- जमीन – जायजाद छीना , वामियों से इतिहास लिखवाकर क्षत्रिय समाज को कुख्यात बनाया। बची – खुची कसर हिन्दी सिनेमा ने किया पूरा
- भाजपा – आरएसएस तो क्षत्रिय समाज के इतिहास पर करवाती है हमला
- जमींदारी उन्मूलन का उद्देश्य सामाजिक विषमता को दूर करना नहीं बल्कि लूटेरे नेताओं की नई जमींदारी कायम करना था
- भाजपा , भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस की बी टीम
- उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पार्टी का आवरण ओढ़े दो गिरोहों और इनके सरगनाओं को छोड़िए बल्कि इनके सिरवारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में भाजपा सरकार है अक्षम
मैं भारत के महाजनपद काल और इसके पूर्व के इतिहास को आत्मसात करके यह कहता हूं कि ये जो लोकतंत्र और संविधान के शासन बात कहते है , वे या तो भोले है या कुटिल।अब अपने भाषणों में जो लोग सामंतवाद के नाम से क्षत्रिय समाज को अपमानजनक बाते कहते है ,वे गिरे और घटिया लोग है। इस देश में जो कथित आजादी और लोकतंत्र है उसका जन्म 1947 में एक जीवित राष्ट्र के कत्ल से शुरु होता है। वही हमारी महान मातृभूमि , जिसे सैंकड़ों वर्षों से परदेशी अक्रमणकारियो से रक्षा करने में अपनी गर्दन कटवाने में क्षत्रिय समाज सबसे आगे रहा।आजादी आई ,कथित महान नेताओं ने दिल्ली से लेकर राज्य की राजधानियों में बड़ी – बड़ी कोठियों पर कब्जा किया। जिनके पास तीन बीघा जमीन नहीं थी, उन लूटेरों ने अरबों – खरबों की संपत्ति बनाई। 1947 में बने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की संपत्तियों की जांच हो जाय तो पता चलेगा कि इस लूटतंत्र की असलियत क्या है ?
लोक नायक जय प्रकाश नारायण रहे हो या डा. राम मनोहर लोहिया,जिन्होंने कांग्रेस की तानाशाहियत ,सत्ता पर एकाधिकार की प्रवृत्ति,भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जनमत तैयार किया जिसके चलते 1967 में उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी।बौद्धिक विमर्श से दूर क्षत्रिय समाज का इन लोगों ने भी खूब शोषण किया और हानि पहुंचाई। 1977 और 1989 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और क्षत्रिय समाज के खिलाफ अभियान चलता रहा।पंजाब से निकला एक भूतपूर्व हिन्दू ,जिसने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में खुलेआम क्षत्रिय समाज /सवर्ण समाज को ललकारा। यह दुर्भाग्य था कि सौदेबाजी की राजनीति के इस कुल गुरु द्वारा बनाया गया गिरोह उत्तर प्रदेश की सत्ता में आ गया।ये अपने मंचों से सवर्ण समाज के विरुद्ध खुलेआम नारे लगवाता रहा। सौदेबाजी की राजनीति का यह कुल गुरु जब जून 1995 में अपने पूरे गिरोह के साथ खात्मे की कगार पर था तब बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा ने इस गिरोह को सत्ता में पहुंचा दिया। इस गिरोह ने सत्ता में रहने पर एक तरफ सौदेबाजी की राजनीति के कुल गुरु के कारखाने में पैदा हुए फर्जी लोगों को महापुरुष बताकर राजधानी एवं उत्तर प्रदेश में जगह – जगह मूर्तियां लगवाई तो दूसरी ओर एनआरएचएम जैसे हजारों करोड़ रुपयों के घोटालों को अंजाम दिया और लखनऊ में कार्यालय आदि के नाम पर जमीन कब्जा किया,राजधानी के माल एवेन्यू इलाके में इस गिरोह की सुप्रीमो ने अपने लिए महल बनवाया।
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की बुनियाद पर पहले जनसंघ और अब भाजपा ने तो एक कदम आगे बढ़कर क्षत्रिय राजाओं को गैर क्षत्रिय साबित करने में लगी रहती है। भाजपा ने कभी भी क्षत्रिय समाज के लिए कोई सकारात्मक कार्य नहीं किया। अर्थात यदि यह कहा जाए कि स्वतंत्र भारत में केंद्र या उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में सत्ता में रहे सभी राजनीतिक दलों ने क्षत्रिय समाज को संस्थागत हानि पहुंचाई तो यह कदापि गलत नहीं होगा।
क्षत्रिय समाज क्या करें :
वर्तमान में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है , संख्या बल में क्षत्रिय समाज कम है , इसलिए जहां चुनाव आदि जीत सकते हैं ,वहां क्षत्रिय समाज के लोगों को लोकसभा , विधानसभा से लेकर पंचायत – नगरपालिका आदि सभी चुनाव को लड़कर जीतना चाहिए। बाकी हर चुनाव में समर्थन उस प्रत्याशी को किया जाय क्षत्रिय समाज का विरोधी न हो और स्वतंत्र भारत में सबसे ज़्यादा शोषित – उपेक्षित – वंचित – प्रताड़ित क्षत्रिय समाज के हक के लिए भी कुछ सकारात्मक करने का विचार रखता हो। समाज अपने बच्चों की पढ़ाई – लिखाई पर ध्यान दे जिससे समाज की प्रशासन, न्यायपालिका, व्यवसाय… आदि में भागीदारी बढ़े। क्षत्रिय समाज के लोग अपनी खाली जमीन पर पेड़ लगाए। किसी भी प्रकार के नशे आदि से बिल्कुल दूर हो जाय ,विवाह में अनावश्यक खर्चे से बचे। गांव में आपस में बिल्कुल लड़ाई न करें।
अनुसूचित जाति – जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ समन्वय स्थापित करे। अपनी ओर से कोई लड़ाई न करें और गैर क्षत्रियों के हमलावर होने पर कानून की शरण में जाय। किसी भी जटिल से जटिल मामले को बातचीत के जरिए ही सुलझाए।क्षत्रिय समाज को अतीत में जीना छोड़कर वर्तमान की चुनौतियों को समझकर आगे बढ़ना चाहिए।
*** नैमिष प्रताप सिंह