महाराणा प्रताप के संघर्षों में क्षत्रियों / राजपूतों के साथ न देने के स्थापित किए जा रहे झूठ का हुआ खंडन

आजकल एक जबरदस्त झूठ फैलाया जा रहा है कि क्षत्रियों / राजपूतों ने महाराणा प्रताप का साथ नहीं दिया। था। हल्दीघाटी के युद्ध या उसके बाद भी जितनी लड़ाइयां महाराणा प्रताप ने लड़ी, उसमे सिर्फ भील लड़े थे और हल्दीघाटी के युद्ध का महाराणा प्रताप का मुख्य सेनापति हकीम खान था। वास्तव में भीलों ने भी महाराणा प्रताप का साथ दिया था लेकिन बहुत बड़ी सच्चाई यह है कि राजपूतों ने कभी भी महाराणा प्रताप का साथ नहीं छोड़ा और उनका मुख्य रूप से उन्होंने ही साथ दिया था। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से भाग लेने वाले ये बड़े राजपूत थे : राणा प्रताप के सेना के दाहिनी फ्लेंक के सेनापति थे ग्वालियर के राजा राम सिंह तोमर उनके बेटे शालिवाहन, भगवान सिंह, प्रताप सिंह और उनकी पूरी राजपूतों की फौज भामाशाह और उनके भाई ताराचंद भी उनकी इसी तरफ़ सहायता कर रहे थे। बाई तरफ की टुकड़ी को ये राजपूत सरदार कमांड कर रहे थे : झाला मानसिंह, जैतसिहोत सजावत्, झाला वीदा , सोनगरा मानसिंह अक्षय राजोत और राव नारायण दास।


हरावल दस्ता जो सबसे आगे लड़कर बलिदान देता था , उसका कमान कर रहे थे राजपूत भीम सिंह डोडिया , राजपूत कृष्णदास चुंडावत , राणा संग्राम सिंह राठौर, राजपूत राम सिंह ,रामदास राठौड़ शालीवाहन सिंह तोमर ,राजपूत मान सोनगरा और इसी दस्ते में पठान हकीम खान अपने 400 पठानों के साथ क्योंकि अकबर ने इन्हीं पठानों को ही दिल्ली से भगा कर उसके राज पर कब्जा किया था।
चंदावल दस्ता यानी जिसको पीछे वाला दस्ता बोलते थे , उसमें मीरपुर का सोलंकी राजपूत राणा पूंजा 400 भीलों के साथ, इसके अतिरिक्त पुरोहित गोपीनाथ , पुरोहित जगन्नाथ , राजपूत परिहार कल्याण, राजपूत सोहन सिंह बछावत , राजपूत जयमल, राजपूत रत्न चंद खेमावत और चारण जगन्नाथ थे ।पूरी सेना का मुख्य कमांड महाराणा प्रताप स्वयं कर रहे थे।
अकबर की सेना के कमांडर इस तरह से थे : दाहिनी तरफ की मुगल सेना का कमांडर सैयद अहमद खान बरहा। बाई तरफ की सेना का कमांडर बहलोल खान गाजी खान , पीछे की दस्ते की कमांड आसफ खान सैयद हासिम और माधव सिंह। शाही फौज के अगले दस्ते का कमांड मिहतर खान मुल्ला , काजी खान शाह मंसूर अपने बहुत सारे मुस्लिम अमीरों के साथ था और सभी का मुख्य सेनापति अकबर द्वारा मानसिंह को बनाया गया था ।
ग्वालियर के राजपूत राजा राम सिंह और उनके तीनों बेटे, उनके 16 साल तक के सभी पौत्र और
महान बलिदानी भीम सिंह डोडिया सहित 3000 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध हारता देख भीलो कि 400 की सेना बहुत ही समझदारी से पीछे हट गई lचारण भट्ट केशव भी वीरगति को प्राप्त हुए lवास्तव में इस युद्ध में शाही फौज पहले लगभग 5 मील भाग गई थी लेकिन बाद में मुस्लिम कमांडरो ने हल्ला मचाया कि बादशाह अकबर बहुत बड़ी फौज लेकर आ गए हैं तब फिर शाही फौज लौट कर आई और लड़ने लगी अबुल फजल ने खुद इस घटना का वर्णन किया है। वीर विनोद में लिखा है कि अंत मे इस युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई थी पर इसके बाद भी राजपूतों ने कभी भी महाराणा प्रताप का साथ नहीं छोड़ा था , 500 राजपूत हरदम महाराणा के साथ साये जैसे लगे रहते थे।इसके अलावा 10000 राजपूत लगातार छापामार लड़ाई विभिन्न जगह से कर रहे थे जिसमें1000 भीलो ने भी उनका साथ दिया था l
राजपूत मुगल चौकियों पर हमला करके उनको मार – काट कर फिर दूसरी जगह अपना ठिकाना कर लेते थे।महाराणा प्रताप भी अपनी मुख्य राजपूत अंगरक्षकों के साथ सदैव ठिकाना बदलते रहते थे। इसी समय चमत्कार हुआ और भामाशाह ने महाराणा प्रताप की बहुत बड़ी सहायता की। भामाशाह की सहायता के कारण जब महाराणा प्रताप ने 25 हजार की बड़ी सेना इकट्ठा कर ली तो इसके बाद तो गोगुंदा और देवर की लडाई में मुगल सेना को बुरी तरीके से हराया। लगभग 5000 मुगल शाही सैनिकों को काट डाला गया। अबुल फजल लिखता है कि शाही मुसलमानों की फौज में इतनी दहशत व्याप्त हो गई थी कि सारे अपने अपने ठिकाने छोड़कर डर के मारे पूरा मेवाड़ ही खाली कर दिए और राणा ने चित्तौड़ को छोड़कर लगभग अपना पूरा राज्य दुबारा जीत लिया।

*** यह लेख डा. रचना हिन्दू के फेसबुक से लिए गया है जिसमें मामूली फेरबदल किया गया है।

2 thoughts on “महाराणा प्रताप के संघर्षों में क्षत्रियों / राजपूतों के साथ न देने के स्थापित किए जा रहे झूठ का हुआ खंडन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *