- आज झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की जन्म जयंती के अवसर पर उनकी स्मृति में एक लेख के जरिए उनको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे है नैमिष प्रताप सिंह
1857 की प्रथम जनक्रांति में अपने प्राणों का बलिदान देकर भारत के इतिहास में अमर हो जाने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की आज जन्म जयंती है। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में कंपनी सरकार की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से बढ़ते हुए सिर पर तलवार के वार से वीरगति को प्राप्त हुई थी। ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की थी कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।
झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि : ग्वालियर
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उन पर सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी हुई एक बहुत ही लोकप्रिय कविता प्रस्तुत है।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
झांसी की महारानी की मूर्ति : सोलापुर, महाराष्ट्र स्थित स्मारक में…
साम्राज्यवाद के विरूद्ध संघर्ष में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के विरासत की प्रासंगिकता
प्रथम जनक्रांति के 165 वर्ष और स्वतंत्रता के 75 वर्ष से बीत चुका है। स्वतंत्रता मिली लेकिन बंटवारे के रूप में और धरती के एक बड़े हिस्से को हमने खो दिया। आजादी के बाद भारत चार बड़े युद्ध और कारगिल के रूप में एक बड़ी घुसपैठ सहित कई छोटी – मोटी लड़ाइयों का सामना कर चुका है। अंतराष्ट्रीय आर्थिक एजेसियों सहित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निशाने पर हमारी आर्थिक संप्रभुता है। इसके साथ – साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत पर अलग से खतरा मंडरा रहा हैं। तमाम विदेशी ताकते और उनके देशी समर्थक हमारी महान विरासत –इतिहास – सांस्कृतिक धरोहर के खिलाफ साजिश रचते रहते है। हमारे पुरखों की छवि को दूषित करना इसी षडयंत्र का हिस्सा हैं।
बरसों पहले बेल्जियम के युवा लेखक फिल्मकार क्रिस्टोफर डी नेविल ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर फिल्म बनाने की योजना बनाई .इसके लिए उन्होंने प्रिंस मिसल दी ग्रेस के उपन्यास ला फेम साक्री का सहारा लिया जिस समय की बात है तब आजादी बचाओ आंदोलन के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता स्वर्गीय राजीव दीक्षित जीवित थे, उन्होंने इसका विरोध किया.राजीव जी ने एक निजी बातचीत में मुझे बताया था कि विदेशी फिल्मकार की योजना फिल्म के बहाने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एवं एक अंग्रेज वकील जॉन लैंग के बीच आपत्तिजनक संबंधों को दर्शाना था.यह बात लगभग 1994 – 95 की है . राजीव दीक्षित के पास संबंधों का एक बड़ा नेटवर्क था , जिसके बूते उन्होंने इसका अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध करवाया .
इस समय मुझे ना तो उस फिल्मकार की योजना के बारे में पता है और ना ही उस फिल्म के बारे में पर मैं इतना अवश्य कहता हूं कि भारत के स्वाभिमान और गौरव से खेलने की कोशिश यदि किसी ने किया तो वह जान ले की जरूरत पड़ेगी तो अपने देश में ही नहीं बल्कि अमेरिका – इंग्लैंड ,अरब – पाकिस्तान अथवा दुनिया के किसी भी कोने में भी जाकर उसको दंडित किया जाएगा। यही वह धरती है जहां जलियांवाला बाग हत्याकांड के खलनायक को वीर उधम सिंह ने सात समंदर पार जाकर मारा था. सोचने का विषय है कि झांसी की रानी और वीर उधम सिंह की विरासत को मन में धारित करने वाले नागरिक जब तक इस भारत भूमि पर हैं तब तक क्या कोई राष्ट्र के इन नायकों / नायिकाओं – महानायकों / महानायिकाओं की स्मृतियों और अमूल्य धरोहर -विरासत – स्वाभिमान तथा गौरव के प्रतीक चिन्हों के खिलाफ षड्यंत्र कर पाएगा ? ऐसा प्रतीत होता है कि देश के हर राष्ट्रप्रेमी युवा को यह सौगंध लेना पड़ेगा कि स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत के साथ तथा राष्ट्रीय सम्मान , स्वाभिमान और गौरव के विरुद्ध यदि किसी ने कोई षड्यंत्र किया तब उसके खिलाफ खड़े होना , उसे समूल नष्ट करना, नागरिकों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. आज यही वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि – भावांजलि होगी.
झांसी की महारानी का जन्मस्थान: वाराणसी …