उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और बिहार मैं पैदा होने वाले कोद्रव जिसे क्षेत्रीय भाषा में “कोदो” भी कहते हैं पहले बडे स्तर पर पैदा होता था पहले के जमाने में जब गरीबों के पास चावल और गेहू नहीं होता था तो वह कोदो खाकर काम चलाते थे और अपनी भूख मिटा कर वह इतना अपार श्रम करते थे धीरे-धीरे कोदो समाज में निम्न स्तर का प्रतीक बनता चला गया और परिणाम तक पूरी तरह बहिष्कृत हो गया कोदो गरीबी का प्रतीक बन गया उत्तराखंड में आज के समय में भी कोदो उगाया जाता है पर समय की करवट देखिए कि यह कोदो अब खुद खाने के लिए नहीं अपितु जापान को निर्यात करने के लिए उगाया जाता है….
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में उगने वाले कोदो का सबसे बड़ा आयातक जापान है क्योंकि जापान में इसकी भारी मांग है जापान में कोदो को बच्चों के लिए सबसे पौष्टिक अनाज के रूप में चिह्नित किया गया है कोदो कैल्सियम, फासफोरस, आयोडीन, विटामिन बी, लौह तत्वों से भरपूर होता है इसमें चावल की तुलना में 34 गुना और गेंहू की तुलना में नौ गुना अधिक कैल्सियम पाया जाता है प्रति 100 ग्राम कोदा में प्रोटीन 7.6 ग्राम, वसा 1.6 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 76.3 ग्राम, कैल्सियम 370 मिग्रा, खनिज पदार्थ 2.2 ग्राम, लौह अयस्क 5.4 ग्राम पाया जाता है इसके अलावा इसमें फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी.1 यानि थियामाइन, विटामिन बी.2 यानि रिबोफ्लेविन, विटामिन बी.3 यानि नियासिन, फाइबर, गंधक और जिंक आदि भी पाया जाता है हम हार्लिक्स और सेरेलक खा रहे हैं,जापानी हमारा कोदो खा रहा है कोद्रव का वानस्पतिक नाम पैसपैलम क्रोबिक्यूलेटम् है